
के लिए प्रसिद्ध है। यह इमारत न केवल स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है, बल्कि ब्रिटिश कालीन भारत की नीतियों और चुनौतियों की भी एक झलक पेश करती है।
गोलघर का निर्माण – अकाल की पृष्ठभूमि में
गोलघर का निर्माण ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने करवाया था। इसका निर्माण कार्य 1786 में पूरा हुआ, जिसका उद्देश्य अन्न भंडारण करना था।
उस समय 1770 के भयंकर बंगाल अकाल के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हो गई थी। इस त्रासदी के बाद ब्रिटिश सरकार ने फैसला लिया कि भविष्य में खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए एक बड़ा गोदाम बनाया जाए — और इसी से गोलघर की नींव पड़ी।
गोलघर की विशेषताएँ
- इसकी ऊँचाई लगभग 29 मीटर (लगभग 96 फीट) है।
- इसका आधार हर दिशा में 125 मीटर व्यास का है।
- इसे बिना किसी स्तंभ (pillar) के बनाया गया है — यह वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।
- इसमें लगभग 1,40,000 क्विंटल अनाज रखने की क्षमता है।
- ऊपर चढ़ने के लिए बनी सीढ़ियाँ घुमावदार तरीके से दोनों ओर से ऊपर जाती हैं — ताकि बैलगाड़ी से अनाज चढ़ाया जा सके।
एक रोचक तथ्य
गोलघर की बनावट ऐसी है कि जब इसे बनाया गया, तब इसके दरवाजे को अंदर की ओर खुलने वाला बनाया गया। एक बार यह पूरी तरह भर जाने पर दरवाजा बंद हो गया और फिर अंदर से अनाज नहीं निकाला जा सका — यह ब्रिटिश इंजीनियरिंग की एक बड़ी भूल मानी जाती है।
आज का गोलघर – पर्यटन और विरासत स्थल
वर्तमान में गोलघर पटना का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। पर्यटक इसकी सीढ़ियाँ चढ़कर गंगा नदी और पटना शहर का सुंदर दृश्य देख सकते हैं। इसके पास बना पार्क और शाम को होने वाला लाइट एंड साउंड शो इसे और भी आकर्षक बनाता है।
ब्लॉगिंग विचार
- “गोलघर: जब अनाज को इमारत ने निगल लिया” – आकर्षक और जानकारीपूर्ण शीर्षक
- गोलघर की वास्तुकला और ब्रिटिश शासनकाल की योजनाओं का विश्लेषण करें।
- पटना यात्रा के दौरान गोलघर विज़िट का अनुभव शेयर करें।
- गोलघर से जुड़े लोककथाएँ और रोचक घटनाएँ शामिल करें।
गोलघर – इतिहास, वास्तुकला और सीख का संगम
गोलघर सिर्फ ईंट और पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि यह उस दौर की कहानी है जब एक त्रासदी ने प्रशासन को सीख दी और एक अद्वितीय संरचना बनी। आज यह पटना की पहचान बन चुका है — जहाँ इतिहास, तकनीक और पर्यटन एक साथ सांस लेते हैं।